विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह की वापसी से बदल सकता है घोसी उपचुनाव का समीकरण
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह से राजनीति का ककहरा सीखने वाले विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह से जिस तरह से भाजपा दूरी बनाकर चल रही है उससे उनके समर्थको में भाजपा में उत्साह देखने को मिल नहीं रहा है। यशवंत सिंह दो बार विधायक मंत्री व लगातार चार बार से विधान परिषद सदस्य है।मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को विधान परिषद जाने की इस मुश्किल घड़ी में यशवंत सिंह आगे आए और मुख्यमंत्री के लिए विधान परिषद की कुर्सी का मोह त्याग दिया। श्री सिंह के राजनैतिक प्रभाव की बात की जाय तो यशवंत सिंह मऊ और आजमगढ़ की राजनीति में अच्छा खासा जनाधार वाला नेता माना जाता है। आजमगढ़ व मऊ की राजनीति में पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की विधान परिषद स्थानीय निकाय चुनाव में अपने पुत्र विक्रांत सिंह को निर्दल ही चुनाव जीता का जन नेता होने का परिचय दिया। यही कारण रहा कि उन्हें भाजपा से निष्काशित कर दिया गया। निष्कासन के दौरान ही आजमगढ़ में लोकसभा के उपचुनाव की घोषणा हो गई जहा भाजपा ने दिनेश लाल यादव निरहुआ तो सपा ने धर्मेंद्र यादव व बसपा से शाह आलम गुड्डू जमाली उम्मीदवार रहे। उक्त उपचुनाव में भाजपा की नाव बीच मझधार में जाकर फस गई और मतदान से दो दिन पूर्व दिनेश लाल यादव ने यशवंत सिंह से संपर्क कर अपने प्रचार में बुलाया। जिसका नतीजा यह रहा कि यशवंत सिंह ने पूरी बाजी ही पलट थी और भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई। स्थानीय निकाय चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रहे विक्रांत को घोसी विधान सभा के कोपागंज, घोसी, बड़राव से अच्छा खासा वोट मिला। वही घोसी में इन दिनों उपचुनाव चल रहा है और यशवंत सिंह का इस चुनाव में न दिखना कौतूहल बना हुआ है। उप चुनाव में भाजपा से यशवंत सिंह की दूरी से भाजपा के लिय मुश्किल पैदा कर सकती है।